राजा के तीन सवाल और उनके जवाब

बात बहुत पुरानी है जब राजा महाराजाओं का ज़माना था और लड़ाइयां बहुत ज्यादा हुआ करतीं थीं। जिनमे कोई भी राजा पच्चीस तीस साल की उम्र पार नहीं कर पाटा था। ऐसे ही एक राज्य में एक राजा था। जो अपनी तीसरी पीढ़ी में था। उसके पिता और बाबा वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। राजा नौजवान था। उसकी उम्र भी लगभग बीस से पच्चीस साल की होगी। राजा ने एक बार एक सभा बुलाई जिसमे पचहत्तर से सौ साल के बुजुर्गों ५० से ७५ साल के बुजुर्गों और तीस से ५० साल के अधेड़ों को बुलाया और कहा सबका आना अनिवार्य है। राजा का बुलावा सब पहुंचे। सबके आने के कुछ देर बाद राजा आया। राजा ने कहा आप लोगों ने मेरा मेरे पिता का  और मेरे दादा का शासन देखा है आप को यह बताना है कि आपको किसका शासन कैसा लगा और किसके शासन में क्या कमी दिखी।राजा के सवाल सुनते ही सबके चेहरे पीले पड़ गए मानो सबको सांप सूंघ गया हो सभा में सन्नाटा छा गया। समस्या यह थी कि किसका शासन अच्छा बताएं किसका ख़राब सबको एक सा भी नहीं बता सकते क्या करें सब की गति सांप छछूंदर की सी हो गयी। सबको मौन देख राजा ने फिर से सवाल दोहराया। फिर सब मौन सबके सिर झुके हुए अब राजा को क्रोध आने लगा उसने तल्ख़ लहजे में कहा बोलिए बोलते क्यों नहीं। संकट की इस घडी में जब किसी को जवाब नहीं सूझ रहा था एक बुजुर्ग खड़े हुए जो उम्र में उसके बाबा के समकालीन लग रहे थे उन्होंने कहा क्षमा करें अन्नदाता आपके दादा यानी बाबा और मै एक साथ बड़े हुए वह बहुत महान थे समय के साथ हम लोग साथ साथ पढ़ने गए वह चूंकि राजकुमार थे तो समय के साथ उन्हें राजगद्दी मिली और मै ज्ञान की खोज में तप करने लगा। आपके दादा के समय प्रजा बहुत खुशहाल थी और मैँ भी एक तपस्वी का जीवन बिताकर संतुष्ट था। एक बार मै एक जंगल में तप कर रहा था उसी समय नगर सेठ के बेटे की बहू उस जंगल से होकर पीहर जा रही थी। महाराज जवान औरत वैसे ही खजाना होती है और यह तो नगर सेठ के बेटे की बहू थी जो जवान भी थी खूबसूरत भी थी और गहनों से भी लदी थी। उस जंगल में कुछ नरपशु भी घात में थे कि कब शिकार आए और उसका भक्षण किया जाए। जब वह जंगल में पहुंची तो नरपशु शिकारी झपट पड़े वह निस्सहाय अबला मदद के लिए चिल्लाने मै भी उस समय जवान था उस अबला की पुकार सुन मै दौड़ पड़ा और कुछ ही देर में उन नराधम नरपशुओं को मार भगाया। उस भद्र महिला ने उसी क्षण मुझे भाई मान लिया। बाद में वह महिला अपने पति और श्वसुर नगर सेठ के साथ ढेर सारे हीरे जवाहरात लेकर आए लेकिन आपके दादाजी के पुण्य प्रताप का प्रभाव ऐसा था कि मैंने कुछ भी लेने से मना करते हुए कहा कि बहन की रक्षा करना भाई का कर्तव्य होता है। फिर आपे पिताजी का शासन आया वह भी बहुत प्रतापी थे लेकिन उनके शासन में मेरे मन में यह विचार आया कि उस दिन जब नगर सेठ हीरे जवाहरात लेकर आया था तो मुझे ले लेने चाहिए थे मै भी सुख से रहता। अब आपका शासन आया तो आप भी बहुत प्रतापी हैं लेकिन मेरे मन में यह विचार आ रहा है कि मैंने व्यर्थ ही अपना जीवन बेकार किया मुझे शादी करके घर बसाना चाहिए था।  उस बुजुर्ग के ये उदगार सुनते ही राजा अपने सिंघासन से उठ खड़ा हुआ और दौड़ कर उनके चरणो में लोट गया।

इस कहानी से क्या शिक्षा मिलती है
बुजुर्ग ने ऐसा क्या कहा कि राजा उनके चरणो में लोट गया।
कृपया अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें।

Comments

Popular Posts