एड्स के प्रति जागरुकता घटी है, बढ़ाने की जरूरत है, जांच तेज हो
रामकृष्ण वाजपेयी
“विश्व एड्स दिवस” के अवसर पर तमाम संस्थाओं द्वारा एड्स जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जैसा कि विदित हो कि वर्ष 1988 से निरंतर एड्स जागरूकता दिवस मनाया जाता है इसका मुख्य कारण ऐसी भयावह वीमारी के संक्रमण से मानवजाति को बचाना हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से एड्स जैसा खतरनाक बीमारी के प्रति लोग लापरवाह हो गए हैं। सरकारी स्तर पर भी एड्स व एचआईवी मरीजों के लिए चलाए जाने वाले कार्यक्रमों की संख्या नगण्य है। उत्तर प्रदेश में वर्तमान में कितने लोग एड्स व एचआईवी संक्रमित हैं। इसका कोई निश्चित आंकड़ा नहीं है। कितने लोग बिना जानकारी में आए ही एड्स या पाजिटिव का शिकार होने के बाद अन्य बीमारियों से असमय काल के गाल में समा जाते हैं। इन हालात में सामाजिक संस्थाओं की भूमिका बढ़ जाती है।
एड्स जागरुकता अभियान के चरण में जब कुछ डॉक्टरों से बात की गई तो उनका कहना था कि ये साल तो कोरोना को समर्पित रहा। इस साल एड्स या एचआईवी जागरुकता के लिए अधिक कुछ नहीं किया जा सका। सरकारी स्तर पर भी ऐसे मरीजों का चिह्नांकन नहीं हो सका। कोरोना काल में एक फायदा जरूर हुआ कि सोशल डिस्टेंसिंग के पाठ से लोग एक दूसरे के करीब या अंतरंग होने से कतरा रहे हैं ऐसे में एड्स व एचआईवी के नियंत्रण में भी मदद मिली है।
वर्ष 2020 में कोरोना महामारी जैसी संक्रमण से पूरा विश्व परेशान है ऐसी स्थिति में एड्स जैसी बीमारी से सतर्क रहना अत्यधिक आवश्यक है। नई सुबह मानसिक स्वास्थ्य एवं व्यवहार विज्ञान संस्थान वाराणसी द्वारा ग्राम खनाव स्थिति आदिवासी बस्ती में जाकर प्रत्येक महिला एवं पुरुष को एड्स से बचने के उपायों के बारे में विस्तार से समझाया गया, संस्थान के विशेषज्ञों द्वारा किशोर एवं किशोरियों में एड्स जैसी संक्रमण से भविष्य में अपने आपको कैसे सुरक्षित रखे विषय पर खुले रूप से विस्तार रूप से समझाया गया तथा उन्हें भविष्य में ऐसी कोई समस्या न हो इसके लिए सतर्क रहने को कहा गया।
संस्थान के निदेशक डा. अजय तिवारी ने ग्रामीण पुरुषो के बीच बैठकर संवाद किया, तथा ग्रामीण महिलाओं के बीच में अर्पिता मिश्रा, ज्योत्सना सिंह, राधिका कुमारी आदि संस्थान के विशेषज्ञों ने चर्चा की।
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