अँधेरी रात में वो कौन था

यह घटना १९७० के दशक में तब की है जब हम लोग कानपुर में पी रोड पर रहा करते थे। मेरे पिताजी दैनिक जागरण में उप सम्पादक थे। उनकी रात ड्यूटी रहती थी। हम लोग किराए के घर में तीसरी मंजिल यानी सेकण्ड फलोर पर रहा करते थे। हमारे बगल में एक मिश्राजी रहते थे। वह एक बहुत बड़ा मकान था जिसमे १७ किरायेदार रहते थे। मकान के प्रवेश द्वार पर कोई दरवाजा न था। मकान घुसने के बाद एक लम्बी गली थी जिसमे ५० फुट अंदर एक कुआं था फिर नीचे रहने वालों का दाहिनी तरफ रास्ता था इसके बाद दाहिनी तरफ एक जीना था जो पहली मंजिल पर जाता था फिर एक दरवाजा था जो रात में बंद रहता था। तीसरी मंजिल पर हमारा घर भी अजीब ढंग से बना था। फर्स्ट फलोर से जीना चढ़कर ऊपर आने के बाद एक विशाल छत थी जिसके पश्चिम हिस्से के बीच में हमारे कमरे का प्रवेश द्वार था। कमरे में धुसने के बाद अंदर एक और दरवाजा था जिसमे चार सीढ़ी उतरने पर दूसरा कमरा था उसके अंदर किचन टाइप का स्पेस था। कुल मिलाकर घर क्या भूलभुलैया ज्यादा था। जादा हो या गरमी रात में सूनी छत डरावनी लगती थी। घर के पास एक पुरानी रेल लाइन थी जो इस्तेमाल में ना आने के कारण जरायम पेशा लोगों का अड्डा बन गयी थी। वह जाड़े की सर्द रात थी। रात में जागने के लिए माताजी स्वेटर बुन रही थीं। मेरे पिताजी के आने का समय करीब आ रहा था। अचानक रात के सन्नाटे को चीरते हुए आवाज आयी र्ामऊ। माँ ने बिना विलम्ब किये कहा आयी। इस के बाद वह कमरे में बाहर से कुंडा लगाकर बाहर निकलीं और एक जीना उतर कर दूसरे बंद जीने के सामने पहुंचीं और पूछा आ गए क्या ? कोई जवाब न मिलने पर उन्होंने दोहराया आ गए क्या ? फिर कोई जवाब नहीं आया तो उन्हें थोड़ी दहशत हुई उन्होंने कहा देखो जब तक जवाब नहीं दोगे दरवाजा नहीं खोलूंगी। कोई जवाब तो नहीं आया अलबत्ता खट्ट खट्ट किसी के जीना उतरने की आवाज सुनायी देने लगी। अब उन्हें दहशत के साथ ये डर भी लगने लगा कि कहीं मेरे पिताजी ही नाराज होकर तो नहीं जा रहे। करीब में ही जंगला था जिससे नीचे की गैलरी दिखती थी तो उन्होंने देखा एक लंबा तगड़ा आदमी जा रहा है। उन्होंने आवाज दी कौन हो भाई किसके यहाँ आए हो लेकिन वो बिना जवाब दिए बढ़ता चला गया। इस घटना के थोड़ी देर बाद मेरे पिताजी आ गए। उन्होंने पिताजी को यह घटना बतायी तो उन्होंने हँस कर बात टालते हुए कहा अरे अगल बगल किसी के यहाँ कोई आया होगा तुम बेकार में दर गयीं। बात आयी गयी हो गई। अगले दिन हल्ला मचा कि बगल के मकान में रहने वाले निगम साहब के यहाँ वारदात हो गयी है उनकी पत्नी घायल हो गई हैं। बात करने पर पता चला कि उसी समय के लगभग जब वो आदमी इधर आया था निगम साहब के यहाँ भी कोई गया था उनका दरवाजा खटखटाया गया वो उस दिन फ़िल्म देखने गए थे घर में उनकी पत्नी और बच्चे थे। उनकी पत्नी ने ये सोच कर कि शायद निगम साहब आ गए हैं कहा कि चले आओ दरवाजा खुला है। वो अंदर घुस गया उनकी पत्नी नेबोलीं आज बहुत देर कर दी तब तक वो करीब पहुच गया और सर पर किसी वजन दार चीज से करारा वार कर उन्हें बेहोश कर दिया और सारा कीमती सामान समेट कर निकल गया। माँ रात की घटना स्मरण कर सिहर गयीं। 

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