वो कौन थे
ये कहानी मेरी माँ सुनाया करती थीं। वह इसे सत्य घटना बताती थीं। ये बात आज से लगभग ८० साल पुरानी है। मेरी माँ उस समय लगभग ७-८ साल की रही होंगी। मेरे नाना उस समय देहरादून के चुहड़ पुर इलाके में रहते थे जिसे आल विकासनगर नाम दिया गया है। वह पेशे से अध्यापक और शौक से पहलवान थे। ये जाड़े के दिन थे। घर के सब लोग आँगन में बैठे धूप सेक रहे थे। जिसमे मेरी माँ की माँ, दादी और अगल बगल की कुछ महिलाएं शामिल थीं। मौसम अच्छा था सभी अपनी अपनीराम कहानी सूना रही थीं। तभी वहाँ दो साधू आए। दोनों साधू गज़ब के तेजस्वी लग रहे थे। दोनों ही देखने में बलिष्ठ थे। दोनों के चेहरे पर घनी काली दाढ़ी थी। मेरी माँ की माँ अर्थात मेरी नानी ने मेरी माँ जिनका घर का नाम बिट्टा था से कहा बिट्टा साधू महाराज को आटा दे दो। माँ घर के अंदर रसोई में गई और आटा लाकर साधुओं की तरफ बढ़ाया तो एक साधू ने झोली फैला कर आटा ले लिया। अब असल कहानी शुरू होती है। आटा लेने के बाद एक साधू तो मुड़ा और चला गया। दूसरा साधू जो उसके साथ आया था वह मेरी माँ की बगल से घर में घुसने लगा मेरी माँ डर कर अपनी माँ से चिपक गयीं तो नानी ने उन्हें झिड़का काहे मरी जा रही है ठीक से बैठ। माँ ने नानी को यह बताना चाहा तो उस साधू ने घूर दिया माँ डर कर चुप हो गयीं और वह साधू घर के अंदर से होता हुआ पीछे लगे एक पेड़ पर चढ़कर पेड़ की सबसे ऊंची पत्तियों पर आसान जमा कर बैठ गया। माँ ने फिर हाथ के इशारे से नानी को यह बताना चाहा तो उस साधू ने फिर घूर दिया। इसके बाद रात में भी वो वहीं बैठा रहा। माँ ने सोते समय बताना चाहा तो फिर ऐसा लगा जैसे पेड़ से कमरे तक सीधा रास्ता हो और साधू की लाल लाल जलती आँखें दिखीं और माँ डर कर या सहमकर फिर चुप हो गयीं। ये अब रोज़ का किस्सा हो गया। माँ जब भी किसी से कुछ बताना चाहतीं तो लाल लाल जलती आँखें आगे आ जातीं। माँ अक्सर सोचतीं कि ये साधू कब नीचे आता होगा कब ऊपर जाकर बैठता होगा। होते होते एक साल गुजर गया फिर जाड़ा आया फिर एक दिन सब लोग घर के सब लोग आँगन में बैठे धूप सेक रहे थे। जिसमे मेरी माँ की माँ, दादी और अगल बगल की कुछ महिलाएं शामिल थीं। मौसम अच्छा था सभी अपनी अपनी राम कहानी सूना रही थीं। तभी वहाँ इस बार एक साधू आया नानी ने मेरी माँ से कहा बिट्टा साधू महाराज को
आटा दे दो। माँ घर के अंदर रसोई में गई और आटा लाकर साधू की तरफ बढ़ाया तो
एक साधू ने झोली फैला कर आटा ले लिया।अब जो साधू एक साल से पेड़ पर बैठा था वो उठा नीचे उतरा और उस साधू के साथ चल दिया माँ ने फिर हाथ के इशारे से नानी को यह बताना चाहा तो उस साधू ने फिर घूर दिया। इस घटना के कई वर्ष बीत गए नाना ने वो घर भी छोड़ दिया। दूसरे घर में आ गए। एक दिन माँ ने अपनी माँ से कहा अम्मा तुमको एक बात बतानी है जब हम चुहड़ पुर में रहते थे तो एक दिन दो साधू आये थे उन्होंने ने कहा दो कहाँ एक साधू आया था माँ ने कहा नहीं दो साधू थे एक तो आटा लेकर चला गया था दूसरा वहीँ पेड़ पर चढ़कर बैठ गया था। जो एक साल बाद अपने साथी के दुबारा आने पर उसके साथ गया था। माँ ने कहा मैंने जब जब ये बताना चाहा उस साधू की लाल लाल जलती आँखें आगे आ जातीं थीं और मै डर कर या सहमकर चुप हो जाती थी । तब नानी ने कहा उस घर में कुछ था और उस साल नाना बहुत बीमार पड़े थे और मरते मरते बचे थे। पता नही वो साधू रक्षक था या फिर कष्ट देने आया था।
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