बावन बीघे का बाग़

 यह एक सत्य घटना है। बात अब से करीब सवा सौ साल पुरानी है। इस घटना को भी मेरी माताजी सुनाया करती थीं। यहाँ एक बात मै बता दूं कि मेरा ननिहाल लखीमपुर खीरी जिले के कस्बे मितौली में था लेकिन मेरे नाना के जीवन का बड़ा भाग देहरादून में बीता। मेरी नानी का मायका लखीमपुर खीरी व शाहजहां पुर के बार्डर के कस्बे मैगलगंज के लिधियायी गाँव में था। अम्मा बताती थीं कि पुराने जमाने में लोग खूब मेहनत करते थे और खूब खाते थे इसीलिये ये कहावत मशहूर थी कि खाये आहार वो उठाए पहार। मेरी माँ के नाना भी खूब बलिष्ठ थे। एक बार जमींदार के यहाँ दावत थी सबको  न्योता दिया गया। मेरी माँ के नाना भी बुलाये गए। सब लोग खाने की पंगत में बैठ गए दोना पत्तल बिछ गए। सबको तरकारी परोस दी गयी। फिर नम्बर आया पूरी परोसने का। पूरी परोसने  के क्रम के बारे में तब उस क्षेत्र में एक कहावत मशहूर थी "सोलह जोटा पहली बार यानी बत्तीस पूरियां पहली बार फिर चार चौकड़ी चार दायें यानि सोलह पूरी फिर दुई दुई दुई दुई दुई दुई यानि बारह पूरी फिर सेकत जाओ फेकत जाओ। अब कहानी की शुरुआत पंक्ति में बैठे लोगों के इतना खाने के बाद शुरू होती है। तो इतना खाने के बाद जब सब उठने लगे तो जमींदार ने कहा अरे पंडित जी लोग अभी बस कैसे और कुछ लीजिये। तो पंडितों ने कहा भाई कुछ रखिये तो खाया जाए इस पर जमींदार ने कहा अच्छा तो लीजिये इकन्नी पूरी। फिर हुआ दुअन्नी पूरी फिर चवन्नी पूरी। जब इस पर भी कोई खाने को तैयार नहीं हुआ तो उन्होंने ढाई सेर पेड़े मगाये और सोने की गिन्नी निकाली और कहा जो इसे खाएगा उसे यह गिन्नी मिलेगी।  बाक़ी सब तो पीछे हट गए, मैदान में रह गए मेरी माँ के नाना व उनके एक मित्र। इन दोनों ने कहा भाई खाली पेड़े तो नहीं चलेंगे दही मंगवाओ तो सोचा जाए। बात की बात दही आ गया। मजमा जुट गया। दोनों लोगों ने ढाई ढाई सेर पेड़े भी खा लिए। जमींदार बहुत खुश हुए दोनों को एक एक गिन्नी दी फिर बोले अब आप लोग कुछ और कर सकते हैं या समापन किया जाए। पूछा गया अब क्या उन्होंने कहा आप दोनों में जो  दौड़ जाए उतनी जमीन उसकी। एक बार सब में जोश आ गया। फिर सब खेत में पहुंचे। दौड़ हुई जिसमे मेरी माँ के नाना बावन बीघा का चक्कर काटकर आ   उनचास बीघे का। मैगलगंज के लिधियायी गाँव में यह बावन बीघे का बाग़ आज भी है क्योंकि पुरानी मान्यता के  अनुसार ब्राम्हण हल की मूठ नहीं पकड़ते थे। 

Comments

Popular Posts