और उस की आवाज चली गयी

यह बात सन 1976 से 79 के बीच की है मै उस समय हरिद्वार में अपने माता पिताजी के साथ रह रहा था।  हमलोग कनखल में होली महल्ला में इंजनवाली हवेली में रहते थे। यह साधुओं की संपत्ति थी। इसके ठीक पीछे रानी की हवेली थी , जिसमे तमाम परिवार रहा करते थे। मेरे बाबा दादी वहाँ सन 1930 से रह रहे थे। यह घर उस समय बने थे जब जाड़ों में हीटर नहीं होता था। कमरों को गर्म रखने के लिए दिवार में कुछ इस तरह से चिमनी बनायी जाती थी कि घुआं कमरों में ना भर कर जाए। और ये चिमनियां पूरी छत पर इफरात में फैली होती थीं। रानी की हवेली की छत पर भी ऐसी चिमनियां फैली थीं। पहले के घरों में ताखे भी होते थे जिनमे लोगबाग अपनी आस्था या विश्वास के मुताबिक़ देवताओं या आत्मा का वास करा देते थे और उन्हें खुश रखने के लिए उन ताखों में दिया जलाना या धुप सुलगाना जैसी क्रियाएँ भी होती थीं। इसी तरह रानी की हवेली की छत पर भी एक  चिमनी ऐसी थी जिस के बारे में यह प्रचलित था कि उसमे किसी का साया है। छत पर बच्चे खेल रहे थे तभी किसी बच्चे ने कहा देखो उस धुआंरे में हाथ न डालना उसमे भूत है। एक बच्चा जो काफी दिलेर था अकड़ कर बोला हाथ दाल देंगे तो क्या हो जाएगा ? बच्चों ने बहुत मना किया लेकिन सबके मना करने के बावजूद उसने हाथ अंदर दाल दिया और धीरे धीरे उसने जितना हाथ अंदर घुसा सकता था घुसा दिया। फिर कहने लगा तुम लोग झूठ कह रहे थे लो देखो अब बोलो। सबने कहा ठीक है अब हाथ बाहर निकाल लो। ठीक है तुम जीत गए। लेकिन यह क्या उसका हाथ अंदर फंस गया वो जोर लगाते हुए चिल्लाने लगा छोड़ छोड़ लेकिन हाथ नहीं निकला। अब और बच्चों ने भी जोर लगाया लेकिन हाथ फिर भी नहीं निकला। अब बच्चे दहशत में आ गए और उसे अकेला छोड़ कर घर भाग गए। रात में उस बच्चे की खोज शुरू हुई तब किसी बच्चे ने बताया। घर वाले जब छत पर गए तब तक वह बेहोश हो चुका था चिमनी तोड़कर उसका हाथ निकाला गया। अस्पताल ले जाया गया लेकिन तब तक सदमे में उसकी आवाज जा चुकी थी। पता नहीं अब उसकी आवाज लौटी है या नहीं लेकिन दहशत का भूत उसकी आवाज तो निगल ही गया। 

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