पांच साल के लिए लूटने का लाइसेंस

आज शाम साढ़े तीन बजे के लगभग मै जब कार्यालय सोनारपुरा आने के लिये सिगरा स्थित आवास से निकला तो सड़क पर आते ही ऑटो मिल गया। ऑटो खाली था सड़क पर भी गर्मी के चलते सन्नाटा था तभी एक बुजुर्ग मेरे बाएं और एक सज्जन दाएं बैठ गए। ऑटो चल दी तभी उन बुजुर्ग ने कहा यदि मै मंत्री होता तो सभी गाड़ियों और ऑटो को शहर से बारह किलोमीटर बाहर कर देता। सबको पैदल चलने पर मजबूर कर देता। जैसे तीर्थ यात्री पैदल और नंगे पैर दर्शन करने और गंगा नहाने जाते हैं ठीक वैसे ही सबको शहर में पैदल चलना पड़ता। बताइये काशी गलियों का शहर है हजारों लोग गलियों में समा जाते हैं और घूम कर निकल जाते हैं लेकिन इन गाड़ियों के चलते सड़कें छोटी पड़ जा रही हैं। अंग्रेज जितना देकर गया हमारी सरकारों ने उसमें कुछ इजाफा तो किया नहीं उसी को सम्हाल नहीं पा रहे हैं। अंग्रेज शासन ज्यादा करता था नोचता कम था। बोलने वो देता नहीं था। अंग्रेज गए नेहरू आए बोलने को तब भी नहीं मिला लेकिन शासन भी ख़त्म होने लगा लूट बढ़ने लगी। इंदिरा जी आयीं तब भी यही हाल रहा। अब तो चुनाव के नाम पर पांच साल के लिए लूटने का लाइसेंस माँगा जाता है। सरकार नाम की कोई चीज बची ही नहीं है। वरना बताओ भैया काशी का इतना नाम लेकिन इसको कोई दर्जा नहीं मिला। सबसे ज्यादा विश्व विद्यालय यहां हैं लेकिन यहां के बच्चे इनमे नहीं पढ़ पाते क्योंकि माँ बाप के पास पैसा नहीं है। यहीं का लड़का पढ़ लिखकर अगर यहां का डी एम बन जाता है तो वह भी यहां आकर यहां के लोगों को भूल जाता है और घूसखोरी के मकड़जाल में उलझकर यहां के लोगों को डंडे के जोर पर धोने में लग जाता है। पता नहीं हम कब जागेंगे। शायद इन लोगों को हमारा चलते फिरते दिखना भी रास नहीं आ रहा। बूढ़ी आँखें लड़के की नौकरी के सपने देखती थीं, नौकरी का इन्तजार करते करते लड़का चल बसा पोता चल बसा। अधिकारी बड़ी बड़ी पार्टियां और जश्न में डूबे रहे आश्वासनों से हमारा पेट भरते रहे और हम चैन की क्या कहें नीम बेहोशी की नींद सोए हुए हैं। बात चल ही रही थी कि मेरा गंतव्य अ गया और मै उतर गया। बात या व्यथा मेरे कानों में गूंजती रही। 

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