वरना मर जाओ -चुनाव में आम आदमी कहाँ है
चुनाव भी भी क्या गज़ब चीज है। जब हमारा समूचा देश एक बड़े रंगमंच में बदल जाता है। जिसमें एक ही नाटक हर बार खेला जाता है, जिसे हम कह सकते हैं सत्ता पाने की गलाकाट प्रतिस्पर्धा का बेहतरीन नमूना। जिसका सूत्रधार चुनाव आयोग होता है। अपराधियों के गिरोह जिस तरह मिलकर एक डॉन चुनते हैं उसी तरह होता इस नाटक में भी है लेकिन इसको सरल रंग देने के लिए अगले पांच साल जिसका खून चूसना होता है उसको भी शामिल कर लिया जाता है। नाटक के मंचन की तारीखें करीब आते-आते सभी दल इस नाटक के लिए अपनी भूमिका लिखने में जुट जाते हैं। यह नाटक वैसे तो हर पांच साल में खेला जाता है लेकिन कभी कभी दो तीन साल के अंतराल में भी खेल लिया जाता है। अब जिसके पास जितना पैसा होता है उसका पार्ट उतना बड़ा हो जाता है। पैसा भी कौन सा वही जिसका एक कतरा किसी आम आदमी की जेब में मिल जाने पर सब मिलकर उसकी जान निकाल लेते हैं। वही पैसा बड़े पैमाने पर बड़ी बड़ी पार्टियां लगाती हैं। लेकिन इस चुनाव की निगरानी कर रहे आयोग को कुछ भी दिखायी नहीं देता वो धृतराष्ट्र बना सब कुछ होने देता है वरना जब राजनीतिक दल अपनी आय के स्रोत बताए बगैर चुनाव मैदान में उतरते हैं तो आयोग उनकी मान्यता क्यों नहीं ख़त्म कर देता। विधि सम्मत ढंग से सत्तर लाख तक प्रत्येक प्रत्याशी को खर्च करने की छूट देने का नाटक क्यों है। क्या यह उचित और सहज प्रत्याशियों को दौड़ से बाहर करने की साजिश नहीं। दरअसल कोई गिरोह नहीं चाहता कि आम आदमी का कोई वास्तविक प्रतिनिधि निचले सदन में आए इसलिए धन बल से आम आदमी की आवाज दबाने की मुहीम में सब गिरोह और उनके प्रतिनिधि एकजुट हो जाते हैं। आम आदमी की आवाज बनी आम आदमी पार्टी भी अपनी आय के स्रोत बता पाने की स्थिति में नहीं है। इस चुनाव में भी चुना कौन जाएगा जिसने कभी जनता की सेवा न की हो जो कभी जनसरोकारों से जुड़ा न रहा हो जिसे आम आदमी का दर्द न पता हो। ये शख्स अगले पांच साल तक काल्पनिक रूप से जनता की रहनुमाई करेगा जिनके घरों का हर महीने का बजट दो से पांच लाख का है वो पांच लाख तक की सालाना आमदनी वाली जनता को बताएंगे कि अभी आप फिजूलखर्ची कर रहे हो अभी आप पर और टैक्स लगाए जा सकते हैं। और सब्जी महंगी है तो हम क्या करें दाल महंगी है तो हम क्या करें गेंहूँ नहीं मिल रहा तो हम क्या करें। हम घोटाले करें या आप को देखें हम बड़ी कंपनियों से कमीशन खाएं या आपको देखें। अगर मेरा पेट भर रहा है तो उसे देख कर अपना पेट भरा मानकर खुश हो लो वरना मर जाओ देश की आबादी बढ़ती रहेगी अगली बार नए मतदाता हमें वोट देंगे। चुनाव में आम आदमी कहाँ है।
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