तमाशों का चुनाव
गज़ब देश की अजब कहानी नहीं बदला इंडिया उर्फ़ भारत है ये खेल तमाशों का देश । अब और बहुत से तमाशों में चुनाव का तमाशा और जुड़ गया है। जिसे चुनाव का तमाशा या तमाशों का चुनाव भी कह सकते हैं। यहाँ के लोगों को रोटी नहीं चाहिए, सब्जी नहीं चाहिए, दाल नहीं चाहिए, चावल नहीं चाहिए, कपड़ा नहीं चाहिए, रहने को घर नहीं चाहिए नागरिक सुविधाएं नहीं चाहिए तो क्या चाहिए ? गाली। हाँ गाली खाना और गाली देना यही यहाँ के लोगों की पसंद है। तभी तो हर पांच साल पर पड़ने वाले चुनावी कुम्भ में जो इस बार इस साल पड़ा है तमाम नेता जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों पर बहस छेड़ने की जगह एक दुसरे के विरूद्ध अमर्यादित और घटिया कमेंट पास कर तमाशबीन जनता की तालियां बटोरने में लगे हैं कोई किसी का सिर काट लाने वाले को इनाम दे रहा है कोई किसी को कुत्ते का भाई बता रहा है कोई खुद को तूफ़ान या सुनामी बता रहा है कोई महिला प्रत्याशी की गरिमा पर चोट कर रहा है। कुछ नहीं मिल रहा तो दूसरे प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी के चेहरे पर कालिख पोत दे रहा है। कोई जूता या चप्पल चला रहा है। कोई वोट के लिए जातीय समीकरण देख आतंकवादियों को गांधी का अनुयायी बता रहा है। मीडिया पागलों की तरह इन सब ऊल जलूल बातों को छाप कर जनता को उसके मुद्दों से भटका रहा है। कहीं पर भी इस पर बात नहीं हो रही कि किस प्रत्याशी में क्या गुण हैं किस प्रत्याशी में क्या दोष हैं। किस क्षेत्र की जनता की क्या समस्याएँ हैं क्या मूलभूत जरूरतें हैं। किस पार्टी की क्या नीतियां हैं। भविष्य की रूप रेखा किस की मजबूत है। और तो और चुनाव के तत्काल बाद कमरतोड़ महंगाई बढ़ने की तरफ भी किसी का ध्यान नहीं है। अभी प्रत्याशी तमाशा दिखा रहे हैं पब्लिक देख रही है। घोटाला पार्टी के घोटालों की तरफ किसी की तवज्जो नहीं है। राजनीतिक शुचिता को सबने डब्बे में बंद कर दिया है अगले पांच साल के लिए, महिलाओं की तैंतीस फीसद भागीदारी कोई दल नहीं दे रहा। अपराधी घोटालेबाज फिर बड़े दलों के नुमाइंदे बन कर मैदान में हैं। धर्म के नाम पर जाति के नाम पर वर्ग के नाम पर भेड़ बकरी रूपी जनता को हांका जा रहा है इस रेवड़ को जो हांक ले गया वो अगले पांच साल इन भेड़ बकरों को मारकर खाएगा और अपना और अपने कुनबे का पेट भरेगा और पांच साल बाद फिर इन भेड़ बकरों को चार दिन पूज कर अगले पांच साल के लिए तैयार करेगा।
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