मि. डेविड

मै इन दिनों वाराणसी में रह रहा हूँ। मै यहाँ तकरीबन तीन साल से हूँ। इससे पहले मै कभी इस शहर में नहीं आया यह मेरे लिए नया शहर था। इसी नाते जब मुझसे पूछा गया कि बनारस या आगरा कहाँ जाना पसंद करेंगे तो आध्यात्मिक रुझान के चलते मैंने बनारस का नाम लिया। अगर भोले नाथ की नगरी होने का तमगा इस शहर के गले से हटा दिया जाए तो अन्य सैकड़ों शहरों की तरह यह भी एक हो जाएगा वो भी अविकसित। टूटी सड़कें ऐसी की यदि किसी गर्भवती को अस्प्ताल ले जाना हो तो रास्ते में प्रसव का खतरा। बुजुर्ग हो तो कब किस गड्ढे में गिरकर हाथ पैर तुड़ा ले। बच्चे आए दिन चोटिल होते रहते हैं वाहन सवार सड़क हादसों में दम तोड़ ते रहते हैं लेकिन शहर अपनी गति से चलता रहता है। गलियों में कोई भरोसा नहीं कब सर पर कूड़े का पैकेट आ गिरे। कब कोई पनारा आपको स्नान करा दे। फिर भी बनारस बनारस है। चाहे शिव की नगरी होने का प्रभाव हो या फिर महाश्मशान का या यहाँ के बाशिंदों के स्वभाव में एक मस्ती और फक्कड़पन है जो इन्हे औरों से अलग करता है। यहाँ दया शब्द की व्याख्या बेहतर दिखायी देती है। जैसे भूखा यहाँ कोई नहीं सो सकता क्यूंकि तमाम जगह माँ अन्नपूर्णा का भण्डार खुला रहता है। दूसरी श्रेणी में वे दयालू आते हैं जो जीव दया से ओत प्रोत हैं।
ऐसे ही एक सज्जन हैं डेविड जो कि वैसे तो ईसाई हैं लेकिन पेशे से सरकारी पशु चिकित्सक हैं और वाराणसी के सभी आवारा पशुओं के गॉड फादर हैं। अविवाहित जीवन बिताने वाले डेविड के ये सारे पशु ही बच्चे हैं।
डेविड बंगाली हैं और उनके माता पिता प. बंगाल में रहते हैं। वह पिछले तीस साल से बनारस में हैं। उनके पिताजी राजनीतिज्ञ रहे हैं और कई बार सांसद रहे हैं। डेविड जी की पढ़ाई लिखाई चर्च संचालित विद्यालय में हुई मिशनरी चाहती थी कि वह फादर बन जाएं लेकिन डेविडजी ने यह स्वीकार नहीं किया। वह पशु चिकित्सक बने और शुरू में कई काम किये फिर आपको सरकारी नौकरी मिल गयी। शुरू में खूब जश्न के माहौल में जिंदगी की शुरुआत की। महंगी महंगी गाड़ियां खरीदीं बढ़िया कपडे पहने। शौक पूरे करते हुए करीब सत्तर हजार का एक कुत्ता खरीदा जिसे अत्यधिक प्यार देते हुए सारे प्रशिक्षण दिलाए। कई प्रतियोगिताओं में उसने मेडल जीते। लेकिन लाड़ला दुलारा ये डॉगी एक दिन अचानक चल बसा। डेविडजी के लिए यह बहुत गहरा सदमा था। पूर्ण सम्मान के साथ कई किलो फूल मालाओं से लादकर उन्होंने उसकी अंतिम यात्रा निकाली उसकी समाधी बनवाई और गहरे अवसाद में चले गए। लोग पगलवा पगलवा कहने लगे लेकिन डेविड जी को गहरा सदमा था कि गॉड ने उन्हें यह कष्ट क्यों दिया। अवसाद में डूबते उतराते एक दिन उनके साथ दुर्घटना हो गई और उन्हें अस्पताल ले जाया गया। जब वह अस्पताल से घर आए तो उनकी जिंदगी बदल चुकी थी। एक नए डेविड का अवतार हो चुका था। यह डेविड आवारा जानवरों का रहनुमा था सड़क पर घूमने वाले ये जानवर अब उनका परिवार थे। उनके दुःख तकलीफ खुद उनके थे तभी तो सड़क पर किसी जानवर को किसी वाहन चालाक ने यदि घायल कर दिया है तो इलाज डेविड करेगे किसी जानवर की किसी वाहन से दबकर मौत हो गई है तो डेविड उसे दफनाएंगे। रात में जब सब सो जाते हैं तो वह घर से एक झोला लेकर निकलते हैं वह सीधे एक ढाबे पर जाते हैं जहां दो सौ रोटी सिकवाते हैं पांच लीटर दूध लेते हैं और दस पाकेट डबल रोटी के। इसके बाद वह कैंट स्टेशन के सामने स्थित ढाबे से निकलते हैं रास्ते में जहां उन्हें कुत्ते दीखते हैं स्कूटर रोक देते हैं और पन्नी में डबल रोटी और दूध डालकर खिलाते हैं इसके बाद उस पॉलीथिन को नष्ट कर देते हैं यह क्रिया वह बार बार सिगरा चोराहे तक दोहराते हैं। यदि किसी कुत्ते को चोट लगी है किसी कुत्ते ने नोचा है या किसी वाहन ने टक्कर मार दी है तो उसे सुई लगाते हैं और दवा लगाकर पट्टी भी बांधते हैं। सिगरा चोराहे के पास आईपी माल के सामने बंदरों की टोली उनका इन्तजार कर रही होती है। वह झोले से रोटियां निकाल कर बंदरों को खिलाना शुरू करते हैं यदि किसी बन्दर को चोट लगी है किसी बन्दर ने नोचा है या किसी वाहन ने टक्कर मार दी है तो उसे सुई लगाते हैं और दवा लगाकर पट्टी भी बांधते हैं। और बन्दर बड़े प्रेम से सब करवाते हैं। इसी के साथ वह कुतिया के पिल्लों को दूध पिलाना नहीं भूलते। यदि किसी जानवर को ठण्ड लगी है तो उसे स्वेटर भी पहनाते हैं। उसके सोने के लिए बिस्तर भी देते हैं। डेविड ने अपनी मारुती वैन सिर्फ इसलिए नहीं बनवाई क्योंकि उसमे वह पिल्लों को रखते हैं। एक कमरे के फ्लैट में रहने वाले डेविड अपने कमरे में भी तीन कुत्ते रखे हुए हैं। इसके अलावा कबूतर, बिल्ली और चूहा भी उनका पालतू है सुबह ४ बजे वह खाना खाते हैं और ४-५ घंटे सोते हैं। इसके बाद आफिस जाकर लोटने पर फिर उनका मिशन शुरू हो जाता है। 

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