और चोर पकड़ा गया

ये घटना जून १९७४ की है। मेरी दादी की तेरहवीं का दिन था। सुबह पिताजी बैंक गए और पंडितों की दक्षिणा और अन्य खर्चो के लिए रुपये निकाल कर घर लाए और मेरी बुआ को दिए। बुआ ने पैसे लिये और अन्य महिलाओं के साथ बात करते हुए दरी के नीचे रख दिए। अब दोपहर बाद जब जरुरत पड़ी तो पिताजी ने बुआ से कहा ज़रा पैसे देना। बुआ ने देखा तो सन्न रह गईं पैसे वहाँ नहीं थे। अब कोहराम मच गया। बाबा बिगड़ने लगे। उस समय पांच हजार रुपये की बहुत कीमत होती थी। शोरगुल सुनकर माँ बाहर आ गयीं और पूछने लगीं कि क्या हुआ। पिताजी ने बताया कि बुआ को पैसे रखने को दिए थे नहीं मिल रहे हैं। माँ ने कहा कहाँ रखे थे , बुआ ने बताया कि दरी के नीचे। माँ ने दरी उठायी और छत पर फेंक दी कहा यहाँ तो नहीं हैं ये बताइये कि उस समय यहाँ कौन कौन था। याद कर कर के बताया जाने लगा तभी एक लड़के का नाम आया कहा गया और छिद्दन था माँ ने कहा बस पैसे छिद्दन ले गया है मै अभी लेकर आती हूँ। इतना कह कर माँ तेजी से निकल गईं। बाबा बदहवास थे अरे बहु तो मूर्ख है पुलिस बुलाओ ऐसे कोई पैसे देता है। उधर माँ सीधे छिद्दन के घर पहुंचीं। संयोग की बात छिद्दन घर से निकल कर कहीं जा रहा था। माँ ने कहा अरे छिद्दन जो तुम पतंग बनाने के लिए दरी के नीचे से लाल रंग का कागज़ लाए हो वो ले आओ। छिद्दन ने कहा अच्छा और तुरंत अंदर जाकर पैसे लाए और माँ के हाथ पर रख दिए। उसकी माँ पूछने लगीं क्या हुआ क्या हुआ। माँ ने कहा कुछ नहीं हुआ ये पैसे उठा लाया था वही ले जा रही हूँ। अब छिद्दन बोला देख लो पूरे हैं तुम्हारे पैसे। माँ ने कहा काम तो तुमने पुलिस में देने का किया है लेकिन तुम्हारी माँ का चेहरा देख कर तुम्हे छोड़ रही हूँ आइंदा से हमारे घर दिखना नहीं। और वापस घर चल दीं। रास्ते में पिताजी मिले तो उन्हें पैसे देकर कहा जल्दी से दादा को दे दो नही तो उनका ब्लडप्रेशर हाई हो जाएगा। पिताजी ने जल्दी से घर आकर पैसे दिए। तो बाबा का क्रोध शांत हुआ। उन्होंने माँ की दूरदर्शिता की सराहना करते हुए पूछा बहू तूने क्या कहा था। माँ ने घटना क्रम बताते हुए कहा दादा कुछ और कहती तो विवाद बढ़ जाता पैसे नहीं मिलते। इससे उस परिवार का इगो भी आहत नहीं हुआ काम भी हो गया।

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