खो गया बचपन
आज हम आधुनिक जीवन शैली को जीने की होड़ में जिस तरफ भाग रहे हैं वह हमें एक ऐसे अंधे और अंतहीन रास्ते पर ले जा रहा है जहां से वापसी को कोई मार्ग नहीं है। बचपन जी हाँ मेरा आशय बचपन से है। वर्तमान दौर के बच्चों का बचपन आता ही नही सीधे परिपक्वता आती है। जिसे हम उसकी शरारत समझते हैं वह वर्तमान दौर से संतुलन बनाने की उसकी जद्दोजहद होती है। कल्पना कीजिये उस दौर की जब रेडियो, टी वी, मोबाइल फ़ोन, कम्प्यूटर नहीं था। इंटरनेट नहीं था। बच्चे, बड़े, बुजुर्ग तब भी होते थे। लेकिन जब मीडिया के ये साधन नहीं थे तो समय कैसे कटता था। क्या करते थे उस समय के लोग। कैसे बीतता था बचपन। हाँ तब बचपन होता था। गाँव में खेत मैदान, बाग़ बगीचे बच्चों की पहली पाठशाला होते थे। दादी बाबा, बुआ, चाचा चाची, ताऊ ताई, चचेरे फुफेरे ममेरे मौसेरे भाई बहन संगी साथी होते थे और उम्र में बड़े लोग नियंत्रक और मार्गदर्शक होते थे। आँख खोलने के साथ या चलना शुरू करने के साथ बच्चे को जो परिवेश मिलता था उसमे बच्चे का उन्मुक्त विकास होता था। तब शहरों में भी जो लोग रहते थे उनका गाँव से गहरा नाता होता था। लोग आपस में बात करते थे क्योंकि तब टी वी के आगे जाकर बैठने की किसी को जल्दी नहीं होती थी। स्कूल से घर आते ही बच्चे खेलने घर से बाहर मैदान में दौड़ जाते थे।
उस समय बच्चे एक शाम में जितना दौड़ लेते थे उतना आज एक महीने क्या साल भर में भी नहीं दौड़ पाते बच्चे। हर घर के बाहर बड़ी बूढ़ी महिलाएं या घर के बुजुर्ग बैठे रहा करते थे रात में दस ग्यारह बजे तक किसी को कोई डर नहीं था कहीं कोई सुनसान नहीं कही वीराना नहीं। अपराध भी इसी लिए कम थे। आज पता नहीं कैसे लोग हैं जो सामाजिक दबाव में बच्चा तो चाहते हैं लेकिन उसी तरह से जैसे घर में पूसी या डौगी पाल कर अपना स्टेटस सिम्बल बनाते हैं बच्चे के लिए न तो माँ या सो काल्ड मम्मी के पास समय है न पिता या डेड या पाप के पास समय है कोई मोबाइल को हमसफ़र बनाए है तो कोई इंटरनेट को बाक़ी बचा समय टीवी चैनलों की भेंट चला गया। जैसे जानवरों के बच्चे अपने हालात से लड़ते बड़े होते हैं वही हालत इंसान के बच्चों की हो गयी है। दादी बाबा, बुआ, चाचा चाची, ताऊ ताई, चचेरे फुफेरे ममेरे मौसेरे भाई बहन जैसे रिश्तों का तो उसे पता ही नही। नौकरानी या आया की छाया में बचपन कब गया पता ही नही स्कूल में लड़के लड़कियों से सामना हुआ तो रिश्तों की मर्यादा का तो उसे पता नही वहाँ एक नर है दूसरी मादा। दोषी कौन ?
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