केजरीवाल का दम

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आप नेता अरविंद केजरीवाल को यह स्थिति भी झेलनी पड़ी जब एक स्लोगन दिखाते हुए कहा गया आदरणीय केजरीवाल जी आपके आने से पहले राजनीति मुझे गंदी लगती थी अब राजनीति से मुझे घृणा हो गयी है आपने ऐसा क्यों किया।



वास्तव में केजरीवाल जी सोचते हैं कि वह पब्लिक को मूर्ख कैसे बनाया जाए जानते हैं । हालांकि एक बार कोई धोखा खा जाए तो उसे मूर्ख नहीं समझना चाहिए। पब्लिक जागरूक न हुई होती तो केजरीवाल की काठ की हांडी न चढ़ती लेकिन एक बार परख कर ही लोग भर पाए। फकत ४९ दिन में अपनी ऊंची महत्वकांक्षा की उड़ान भरने के मंसूबे से केजरीवाल कुछ ऐसे अपना दंड कमंडल लेकर चल दिए जैसे कोई जोगी घर परिवार का मोह त्याग कर लोगों को रोता कलपता छोड़ कर चल देता है। यह सदमा उन लोगों के लिए अप्रत्याशित था जिन्होंने अपना कीमती वोट देकर उन्हें यह मुकाम दिलाया था। और फिर केजरीवाल ने सारी छीछालेदर करा डाली अन्य दलों की तरह वह भी यह बता पाने की हालत में नहीं हैं कि उनकी पार्टी का नब्बे फीसद फंड कहाँ से आया है। उनकी पार्टी में भी दागदार लोग भर गए हैं टिकट भी पा गए हैं। लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ने की रफ़्तार से ज्यादा गिरने की रफ़्तार है। केजरीवाल का दम कितना है यह तो इलेक्शन के नतीजे बताएंगे लेकिन बनारस आकर उन्होंने गलती कर दी है इसका अहसास शायद आज के सूने रोड शो से उन्हें हो गया जब जनता की उपस्थिति नदारद रही।संस्कारी शहर वाराणसी में मदन मोहन मालवीय जी के सिर से ऊपर झाड़ू  भी जनता को नागवार गुजरी है। आज से पहले केजरीवाल कहाँ थे। बनारस को कितना जानते हैं वो पहले पांच साल सेवा करें फिर मेवा चखें। 


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