जब जान के लाले पड़े

हरिद्वार में जब हम बाबा के साथ रहते थे, मतलब है मेरी माँ , पिताजी और दो छोटी बहने। वह समय मेरा यादगार समय है। कम से कम खाने पीने के मामले में।  सुबह उठकर नित्यकर्म से निवृत होकर पढ़ो फिर नाश्ते में मठरी, नमक पारे और सोहन पापड़ी और दूध पीकर स्कूल जाना फिर इंटरवल में घर आकर छक कर मटठा पीना इसके दोपहर में घर आने पर चूल्हे पर बटलोई में बनी दाल, रोटी, भात और सब्जी के साथ अनारदाने की चटनी का भोजन करना। हाँ एक बात बहुत खराब लगती थी वो ये कि बाबा रोज टमाटर की कढ़ी बनवाते थे और हमें एक कटोरी कढ़ी पीना अनिवार्य था। इसके बाद आराम करो फिर दोपहर दो से तीन बजे के बीच मौसम के फल खाने का सत्र चलता था। इसके बाद शाम चार से पांच बजे के बीच बच्चों से पूछा जाता था कि क्या खाओगे फिर जो तय हो चाट, समोसा या बर्फी पेड़ा खाने को मिल जाता था। फिर खेलो कूदो और पढ़ाई करो। आठ से नौ बजे तक रात का भोजन करो। इसमें करेला खाना अनिवार्य था जिसमे हम बच्चों की नानी मरती थी। इसके बाद सोने की घंटी बज जाती थी।
गरमी की छुट्टियों में छोटी बुआ और पांच भाई -बहने और हो जाते थे फिर तो आठ बच्चे मिलकर पूरे घर में कोहराम मचा देते थे। बुआ के साथ घूमने को भी खूब मिलता था। हम लोग अक्सर मनसा देवी घूमने जाते थे पैदल घुमावदार रास्ते पर बच्चे दौड़ते हुए चढ़ते थे वैसे मात्र १५०० मीटर की ऊंचाई पर शिवालिक पहाड़ी पर बैठीं मनसा देवी तक पहुचना ज्यादा दुरूह भी नही था।  ऐसे ही एक बार हम बुआ के साथ मनसा देवी घूमने गए। बच्चों में शुरू से ही आगे निकलने की होड़ थी और मुख्य होड़ मेरी और बुआ के एकलौते पुत्र आलोक के बीच थी। हम दौड़े आलोक जी मुझसे बड़े थे वो आगे निकल गए अब मैंने शॉर्ट कट पकड़ा और चक्कर लगाने के बजाय सीधे चढ़ना शुरू किया। एक बार मई आगे हो गया मजा आया अगले मोड़ पे मैंने फिर  शॉर्ट कट पकड़ा लेकिन अबकी गलत हो गया सुखी पहाड़ी पर खड़ी चढ़ाई में बजरी में फंस गया अब सोचा वापस उतरूं तो पीछे से आलोक जी चिल्लाए रुको हम गिर जाएंगे मै पलटा तो उनके पीछे बाकी सब बहनें कतार में अब मेरी नज़र और नीचे गई तो होश उड़ गए नीचे अंतहीन गहरी खाई। मेरे मुँह से बेसाख्ता निकल पड़ा तुम सब मेरे पीछे मरने क्यों चले आए । हालांकि मै भी बच्चा ही था लेकिन आलोक एकलौता लड़का था । यह सोच कर मेरा दिल बैठा जा रहा था । अब आगे बढ़ना ही विकल्प था। पीछे लौटना सम्भव नही था। लेकिन आगे बढ़ें कैसे जहां हाथ रखो फिसलती बजरी नीचे ले जाने लगती। ऊपर कम से कम बीस फुट का फासला था और वापस लौटें तो तीस फुट नीचे सरकना था। पहला काम ये किया नीचे जो बहन सबसे पीछे थी उसे वापस उतरने का इशारा किया। उससे बड़ी गुड़िया को भी वापस किया उससे बड़ी को भी वापस किया। अब हम चार बच्चे बीच में थे सब एक दुसरे को गरिया रहे थे तब तक ऊपर बुआ पहुँच गयीं ये उनको बहनो ने बताया होगा फिर ऊपर से चादर लटकायी गयी जिसे पकड़ कर हम ऊपर चढ़े। डांट तो पड़नी थी सो पड़ी लेकिन मार पड़ने से बच गए लेकिन फिर कभी शार्ट कट नहीं पकड़ा। 

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