टेलेंट इज़ अ बिग प्रॉब्लम इन अवर कंट्रीज् पॉलिटिकल सिस्टम
मेधा या बुद्धी या ज्ञान या जानकारी से परिपूर्ण होना बहुत बड़ा अभिशाप है। क्योंकि यह एक ऐसी चीज है जो बाज़ार से खरीद कर न तो खुद ली जा सकती है न ही अपने चाहने या जानने वालों को किसी से छीन के दी जा सकती है न किसी के पास से चुराई जा सकती है। लॉकर या सेफ में बंद करके रख देने पर नष्ट हो जाती है खर्च करने पर बढ़ती है। ये उस मेधा या बुद्धी या ज्ञान की विशेषता है। अब सवाल ये है कि ये समस्या या अभिशाप कैसे है। भाई ऐसा इसलिए है क्योंकि जिसके पास ये नहीं है वो टेलेन्टेड व्यक्ति को एक मिनट भी बर्दास्त नहीं करता। और बहुतायत ऐसे ही मूर्खों की है जो अपनी अज्ञानता छिपाने के लिए टेलेन्ट को न तो मान्यता देते है और न ही उसे स्वीकारते हैं। जिस तरह जंगल में एक सियार के हुआ हुआ करने पर बाकी सियार भी हुआ हुआ करने लगते हैं उसी तरह चार अज्ञानी मिलकर एक ग्यानी को मूर्ख बता देते हैं ।
मित्रों ये हमारे देश का दुर्भाग्य ही है कि जानकार व्यक्ति को बड़ी आसानी से लोग मूर्ख साबित कर देते हैं। ठीक यही हाल हमारे राजनेताओं का है वो अंधों में काने राजा बन्ना चाहते हैं। लिहाजा दुसरे को तर्क में तो हरा नहीं सकते इसलिए घटिया आरोप प्रत्यारोप की राजनीति पर उतर आते हैं। चाहे वो भाजपा के मोदी हों या केजरीवाल या राहुल गांधी या आजम खान या बेनी प्रसाद और इन नेताओं की देखा देखी में तमाम छुटभैये नेता भी जीभ को काबू में न रखकर भक्क से अनाप शनाप जो जी में आया बक देते हैं। राजनीति में उतरने के लिए भी डिग्री होनी चाहिए और न्यूनतम योग्यता निर्धारित होनी चाहिए कम से कम समकालीन राजनीति का ज्ञान तो अनिवार्य होना ही चाहिए। नेता ऐसा होना चाहिए जिसे उस वर्ग से बेहतर जानकारी हो जिसका कि वह नेतृत्व करता है।
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