सेक्स अपराधों पर कैसे पाएं काबू
शक्ति, शिव और विष्णु के पूजक इस देश में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध वास्तव में चिंता का विषय होना चाहिए और है भी लेकिन हमारे बुद्धिजीवी, विचारक और चिंतक किसी घटना के घटित होने पर चार दिन तो इस विषय पर चर्चा करते हैं लेकिन इसके बाद इसे मिटटी डालकर दफना देते हैं। इस बात पर चिंतन क्यों नहीं होता कि क्या हमारे देश की संस्कृति का अंग है बलात्कार और यौन अपराध। यदि ये हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है तो फिर क्या कारण है कि बलात्कार बढ़ते जा रहे हैं। क़ानून की सख्ती का भी उन पर कोई असर नहीं हो रहा है। हम इस बात पर चर्चा क्यों नहीं कर रहे कि देश में टेलीवीजन आने से पहले बलात्कार का ग्राफ क्या था या जब देश आजाद हुआ उस समय महिलाओं के प्रति अपराधों की स्थिति क्या थी। जैसे जैसे विकास होता गया अपराध बढ़ते गए क्यों मुझे ध्यान है कि जब मैंने होश सम्भाला अखबार पढ़ना शुरू किया उस समय अपराध की खबरें एक पेज भर की क्या कहूं गिनी चुनी दो या चार होती थीं। लेकिन टी वी आने के बाद अपराधों का ग्राफ एकाएक बढ़ गया और इंटरनेट आने के बाद तो जैसे बाढ़ सी आ गई। यह तो हुआ एक कारण दूसरा हम अगर सिनेमा के विकास पर नज़र डालें तो पहले हिरोइनो का पूरा बदन ढका रहता था आज ढका क्या है यह खोजना पड़ता है। तीसरा कारण पहले हमारे समाज में सत्तर फीसद लोग खेती करते थे जो कमाने शहर जाते थे उनके पत्नी और बच्चे गाँव में रहते थे जहां एक गाँव क्या कहें कई गाँव तक पहचान होती थी कि फलाने की बेटी है या अमुक की बहु है। जब लोगों ने बीवियों को शहर की हवा खिलानी शुरू कर दी तो सामूहिक परिवार टूटने लगे। बढ़ती आबादी के लिए शहर में नई नई कालोनियां बनने लगीं जहां कुछ भी करो कोई पूछने वाला नहीं। किसी को किसी से मतलब नहीं। अपराध करने वाले को भी सामाजिक बहिष्कार या परिवार की इज्जत प्रतिष्ठा जाने का भय नहीं रहा। रही सही कसर टी वी और सिनेमा की क्रान्ति और इंटरनेट पर मौजूद नंगी पिक्चरों ने पूरी कर दी। जिस देश में बच्चे पोर्न की घुट्टी पी कर जवान हो रहे हों जहां पिता पुत्री, भाई बहन के रिश्ते कलंकित हो रहे हों, चाची, बुआ, ताई, मौसी, मामी के रिश्ते पहचान खो रहे हों। बच्चे इन रिश्तों की पहचान ना जाने। वहाँ केवल नारी जागरण एक खोखला नारा हो जाएगा। एक चौथा कारण भी है शायद मेरी यह बात कुछ लोगों को खराब लगे लेकिन मै जान बूझ कर लिख रहा हूँ। हमारे प्राचीन समाज में मानव प्रवृत्तियों को समझा गया था और उसी के अनुरूप व्यवस्थाएं दी गई थीं। नगरवधुएं इसी कड़ी का हिस्सा थीं जिसको जरूरत हो वो मूल्य चुका कर उसे हासिल कर सकता था और नगरवधुओं को सम्मान से देखा जाता था यह व्यवस्था इसलिए थी ताकि बहु बेटियां सुरक्षित रहें। तवायफों द्वारा अदब और तहजीब सिखाए जाने के भी दृष्टांत हैं। इनके स्वास्थ्य की जांच होती थी इन्हें बाकायदा लाइसेंस मिलता था। आज सभ्य समाज में यह सोच निकृष्ट कही जा सकती है लेकिन क्या हम वेश्यावृत्ति उन्मूलन कर पाए हैं आज नवीन कालोनियों में औसतन बड़े पैमाने पर देह व्यापार हो रहा है और कायर लोग समाज में इज्जत दार होने का ढोंग रचते हुए वहाँ तो नही जाते लेकिन अपने घर की नौकरानी या पड़ोस की जवान लड़की को फुसला कर धमका कर कुकर्म करते रहते हैं। मेरे दृष्टिकोण में सजा तो जरूरी है ही समस्या का समाधान भी जरूरी है।
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