पिताजी की भावुकता और पीड़ा के वह क्षण


 1976 में हरिद्वार पहुचने पर बाबा के प्रभाव से मेरा सीधे कक्षा 6 में दाखिला हो गया। मै खुश था लेकिन नीव मज़बूत न होने से खुद को स्कूल में अजायबघर के नमूने की तरह महसूस करता था। वस्तुतः जो बच्चे लोअर के जी, अपर के जी पढते हुए आए थे वो स्कूल के माहौल से भी हिले मिले थे और तमाम  स्कूली शिक्षाओं और नियम कायदों से भी वाकिफ थे। मै अनगढ़ निपट अनाड़ी उनके बीच उपहास का पात्र बन गया था और फिर पढ़े लिखे लोगों की महफ़िल में कोई निपट देहाती जैसे नमूना बन जाता है मेरी दशा भी कुछ वैसी ही हो गयी थी। किसी तरह से धक्के खा खा कर साल गुजरा। लेकिन रिजल्ट में मै गणित में फेल हो गया। पिताजी इस घटना से कितना आहत हुए होंगे आज जब मै दो बच्चों का बाप बन गया हूँ समझ सकता हूँ लेकिन उन्होंने मुझसे कुछ भी नहीं कहा। पिताजी ने पूरे जीवन में मुझे कभी मारा भी नहीं। अब पिताजी ने मुझे गणित पढ़ाने का बीड़ा उठाया। वह पढ़ाते थे और जब ठस बुद्धी के मेरी समझ में नहीं आता था तो वह अपना सर धुन लेते थे। यदि पिताजी मुझे मारते तो वह चोट उतनी असरकारक नहीं होती जितनी उनको अपना सर पीटते देख मुझे होती थी। खैर सप्लीमेंट्री में मै पास हो गया लेकिन उसके बाद कभी फेल नहीं हुआ। जिंदगी भर के लिए ये सबक बन गया।  

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