वो शैतानियाँ
बचपन में मेरा पिताजी से ज्यादा संवाद नहीं हुआ। कानपुर में जब पिताजी दैनिक जागरण में कार्यरत थे उस समय मै बहुत छोटा था। अक्सर मेरे पिताजी रात में घर आते समय कुछ मिठाई लाते थे और मेरे सोकर उठने पर कहते थे। बेटा मैंने सपने में देखा कि अंदर एक डिब्बे में मिठाई रखी है। मै कई बार ढूंढ लेता कई बार नहीं तब भैया जाते और निकाल लाते। एक बार अम्मा ने होली पर गुझियाँ बनायीं और एक डिब्बे में भर कर बाहर रख दीं और एक कनस्तर में भर कर टांड पर रख दिन दीं। अब अम्मा हम दोनों भाइयों को रोज एक या दो गुझियाँ दे देतीं और हम शराफत से ले लेते। और अम्मा जब किसी काम से इधर उधर जातीं तो दोनों भाई एक हो जाते भैया मुझे कंधे पर बैठाकर टांड पर पहुंचा देते और दोनों मज़े से गुझिया खाते। होली गुजर गयी एक बार कुछ लोग होली मिलने आए। अम्मा ने कहा जाओ गुझिया ले आओ। गुझिया नहीं आयीं तो उन्होंने दुबारा कहा, तीसरी बार वह खुद उठकर आयीं। बोलीं गुझिया क्यों नहीं ला रहे हो। जवाब मिला गुझियाँ ख़त्म हो गयी हैं। उन्होंने कहा टांड पर कनस्तर से ले आओ। जवाब मिला वो तो पहले ही ख़त्म हो गयी थीं। अम्मा ने सर पकड़ लिया। हम दोनों भाई मार पड़ने के डर से भाग लिए।
हरिद्वार में कनखल में बाबा का कडा अनुशासन था देर से सोकर उठने पर मै अक्सर लतियाया जाता था। घर में रेडियो पर फिल्मी गाने सुनने या फिल्मी गाना गाने पर भी रोक थी। एक बार मेरी छोटी बुआ और उनके बच्चे आए हुए थे हम सब बच्चे छज्जे पर खड़े होकर समवेत स्वरों में गा रहे थे झूम बराबर झूम शराबी। तब तक चौक से बाबा आ गए और जीना चढ़ते चढ़ते चिल्लाए कौन है कौन गाना गा रहा है। बाबा की आवाज सुनते ही सबकी सिटी पिटी गम हो गयी सारे बच्चे तिड़ी हो लिए जिसको जहां मौक़ा मिला छिप गया। अब सबकी पेशी शुरू हुई। पहले जिसे बुलाया गया उससे पूछा गया गाना गा रहा था उसने कहा मै नहीं और सब गा रहे थे। मुझे भी बुलाया गया गाना गा रहा था मैंने कहा सब गा रहे थे तो मै भी गा रहा था अब मेरी बुआ आगे आयीं उन्होंने कहा क्या दादा आप भी हद करते हैं बच्चों ने अगर गा लिया तो क्या किया जाए अब नहीं गाएंगे। और चेतावनी के साथ हम लोगों की जान छूटी।
कनखल की ही एक और घटना हमारे घर के सामने छज्जे पर सड़क से आकर कुत्ता अक्सर टट्टी कर जाता था अब उसे उठाकर फेकने को मुझसे कहा जाता था। मन को बहुत बुरा लगता था पर करना पड़ता था क्योंकि अगर मै नहीं करता तो माँ को करना पड़ता। ठीक से याद नहीं जाड़े के दिन थे या बरसात के बुआ और मेरे फुफेरे भाई बहन वहीँ थे। अब फिर कुत्ता आया और गंदा कर गया मुझ से साफ़ करने को कहा गया जब मै सफाई कर के हाथ धो रहा था बाबा ने मुझसे पूछा नहाएगा क्या मैंने कहा और क्या बस इतना कहते ही मेरी पिटाई शुरू चार पांच झापड़ मारने के बाद बोले एक शब्द हाँ क्यों नहीं कहा दो शब्द क्यों बोले हिंदी में शब्दों की मितव्ययिता का महत्व होता है। आज जब लोगों को बातचीत या लेखन में अनर्गल विस्तार करते देखता हूँ तो दुःख होता है।
हरिद्वार में कनखल में बाबा का कडा अनुशासन था देर से सोकर उठने पर मै अक्सर लतियाया जाता था। घर में रेडियो पर फिल्मी गाने सुनने या फिल्मी गाना गाने पर भी रोक थी। एक बार मेरी छोटी बुआ और उनके बच्चे आए हुए थे हम सब बच्चे छज्जे पर खड़े होकर समवेत स्वरों में गा रहे थे झूम बराबर झूम शराबी। तब तक चौक से बाबा आ गए और जीना चढ़ते चढ़ते चिल्लाए कौन है कौन गाना गा रहा है। बाबा की आवाज सुनते ही सबकी सिटी पिटी गम हो गयी सारे बच्चे तिड़ी हो लिए जिसको जहां मौक़ा मिला छिप गया। अब सबकी पेशी शुरू हुई। पहले जिसे बुलाया गया उससे पूछा गया गाना गा रहा था उसने कहा मै नहीं और सब गा रहे थे। मुझे भी बुलाया गया गाना गा रहा था मैंने कहा सब गा रहे थे तो मै भी गा रहा था अब मेरी बुआ आगे आयीं उन्होंने कहा क्या दादा आप भी हद करते हैं बच्चों ने अगर गा लिया तो क्या किया जाए अब नहीं गाएंगे। और चेतावनी के साथ हम लोगों की जान छूटी।
कनखल की ही एक और घटना हमारे घर के सामने छज्जे पर सड़क से आकर कुत्ता अक्सर टट्टी कर जाता था अब उसे उठाकर फेकने को मुझसे कहा जाता था। मन को बहुत बुरा लगता था पर करना पड़ता था क्योंकि अगर मै नहीं करता तो माँ को करना पड़ता। ठीक से याद नहीं जाड़े के दिन थे या बरसात के बुआ और मेरे फुफेरे भाई बहन वहीँ थे। अब फिर कुत्ता आया और गंदा कर गया मुझ से साफ़ करने को कहा गया जब मै सफाई कर के हाथ धो रहा था बाबा ने मुझसे पूछा नहाएगा क्या मैंने कहा और क्या बस इतना कहते ही मेरी पिटाई शुरू चार पांच झापड़ मारने के बाद बोले एक शब्द हाँ क्यों नहीं कहा दो शब्द क्यों बोले हिंदी में शब्दों की मितव्ययिता का महत्व होता है। आज जब लोगों को बातचीत या लेखन में अनर्गल विस्तार करते देखता हूँ तो दुःख होता है।
Haan..waqai bahut gehre tathyon ko aapne samne rakha hai..aqsar ham dhyan nhi dete..
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